आज सुबह गरमा गर्म चाय के प्याले के साथ, अख़बार पढ रहा था; माननीय सभासदों के कार्टून के खिलाफ विशेषाधिकार की चुटीली खबर पूरी आत्मसात नहीं कर पाया था, कि यार तेजा आ धमका
बात व्यंग्य, कार्टून, विशेषाधिकार से होती हुई सहिष्णुता पर आ टिकी तो वह धीरे से डरते-डरते बोला यार हो तो तुम भी गुस्सैल ! मैंने फड़ाक से अख़बार उसके मुंह पर दे मारा; और कहा शर्म नहीं आती मेरे ही घर में आकर मुझपर झूठा दोषारोपण करते हो ; दफा हो जाओ यहाँ से !
वह बुदबुदाते हुए; जान बचाकर भागा -
निंदक नियरे राखिये; आँगन कुटी छंवाय;
बिनु साबुन, बिनु नीर के ; निर्मल करे सुभाय ;
पत्नी मेरी तरफ टेढ़ी नज़रों से देखने लगी
अब आप ही उसे समझाएं कि , झूठ बात को मैं सच कैसे मान लूं ?
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बात व्यंग्य, कार्टून, विशेषाधिकार से होती हुई सहिष्णुता पर आ टिकी तो वह धीरे से डरते-डरते बोला यार हो तो तुम भी गुस्सैल ! मैंने फड़ाक से अख़बार उसके मुंह पर दे मारा; और कहा शर्म नहीं आती मेरे ही घर में आकर मुझपर झूठा दोषारोपण करते हो ; दफा हो जाओ यहाँ से !
वह बुदबुदाते हुए; जान बचाकर भागा -
निंदक नियरे राखिये; आँगन कुटी छंवाय;
बिनु साबुन, बिनु नीर के ; निर्मल करे सुभाय ;
पत्नी मेरी तरफ टेढ़ी नज़रों से देखने लगी
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