गुरुवार, जून 07, 2012

सच

आज सुबह गरमा गर्म चाय के प्याले के साथ, अख़बार पढ रहा था; माननीय सभासदों के कार्टून के खिलाफ विशेषाधिकार की चुटीली खबर पूरी आत्मसात नहीं कर पाया था, कि यार तेजा आ धमका

बात व्यंग्य, कार्टून, विशेषाधिकार से होती हुई सहिष्णुता पर आ टिकी तो वह धीरे से डरते-डरते बोला यार हो तो तुम भी गुस्सैल ! मैंने फड़ाक से अख़बार उसके मुंह पर दे मारा; और कहा शर्म नहीं आती मेरे ही घर में आकर मुझपर झूठा दोषारोपण करते हो ; दफा हो जाओ यहाँ से !
वह बुदबुदाते हुए; जान बचाकर भागा -

निंदक नियरे राखिये; आँगन कुटी छंवाय;

बिनु साबुन, बिनु नीर के ; निर्मल करे सुभाय ;

पत्नी मेरी तरफ टेढ़ी नज़रों से देखने लगी

अब आप ही उसे समझाएं कि , झूठ बात को मैं सच कैसे मान लूं ?


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