शनिवार, अक्तूबर 13, 2012

उलंघन

पिछली रात रामलीला के उदघाटन हेतु गया; तो RCP के विद्यार्थियों ने गणेश-वंदना और शिव-अर्चना के दो नृत्य पेश किये। कला की दृष्टि से उनका प्रयास सराहनीय था; 
किन्तुदेश, काल और परिस्थिति की जब हम अवहेलना करते हैं; तो अच्छा भी बुरा ही लगता है। यदि कोई DISCO-DANCE COMPETITION होती तो निश्चय ही मैं उनकी प्रशंसा करता। श्रद्धा के बिना भक्ति स्वीकार्य नहीं हो सकती।  हम अपनी अगली पीढ़ी को राम, शिव और गणेश के बारे में क्या सन्देश देना चाहते हैं ? यह विचारणीय है
जब मैं अपने पिता के सामने हूँ, तो मैं पुत्र हूँ। विद्यालय में शिष्य हूँ। BUS या RAIL में यात्री हैं, जो CONDUCTOR के पर्यवेक्षण में रहना चाहिए। सब्जी खरीदने बाज़ार जाएँ, और रेहड़ी वाले से पूछें आलू क्या भाव है ? उसका जवाब - 20 रुपये किलो। तो हम ज्यादा से ज्यादा इतना ही कह सकते हैं- सेठ जी 15 लगाने हैं, तो 3 किलो दे दो। SCHOOL  में बच्चे का दाखिला करवाने जाते हैं , तो हम सिर्फ अभिभावक हैं। वहां का नियंत्रक संस्था प्रधान ही है। मंदिर में जाते हैं तो सिर्फ जीव हैं ; इससे ज्यादा कुछ नहीं।   
हम अपनी हैसियत को लांघें नहीं तो अच्छा है। 


धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भाव हो; विश्व का कल्याण हो 
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