बुधवार, मई 17, 2017

न न, न न; न न, न न; 
मेरी बेरी के बेर, मत तोड़ो; 
कोई काँटा, चुभ जायेगा।
निषेध सदैव दुर्भावना पूर्ण नहीं होता। यह सही है कि, हमें नकारात्मक की बजाय सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। पर
पर नाराज़गी के डर से किसी की हाँ में हाँ मिलाना; यह तो चाटुकारिता कहलाती है। 
प्राणों के भय से जिस राजा का मंत्री, वैद्य और गुरु झूठ बोलें उस राजा के राज्य का; धर्म का और तन का अंत जान लेना चाहिए। 
सचिव बैद गुर तीनि जों प्रिय बोलिहिं भय आस 
राज धर्म तन तीनि कर बेगहिं होइहीं नास
   डर से, संकोच से, लालच से,हेकड़ी से  या फिर अनभिज्ञता से  भी कभी हम न की बजाय, हाँ , कह देते हैं ; तो कभी न कभी उसका खामियाजा भुगतना ही पड़ता है। न की बजाय हाँ कहना; न तो वीरता है, और न ही बुद्धिमानी। इसकी बजाय विनम्रता-पूर्वक न कह देना; निश्चय ही, हिम्मत, बुद्धिमानी  और दूर-दृष्टि है; जिससे भविष्य की कई पेचीदगियों और परेशानियों से बचा जा सकता है।
BE BOLD, IN; WHAT YOU STAND, FOR  !               1
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